शिक्षा के प्रति मांगिहौं भिक्षा,
रहिहौं गुरु शरनाई।
मातु सरस्वती गुरु चरण - सरण में,
सदा रहूं लव आई।।
दीन जानि मोको उबार अब,
असरन शरन तुम्हारे।
हूं अनाथ, हौ नाथ जगत के,
मातु भक्त भवतारे।।
भववंधन बांधत निशिवासर,
याचक शरन तुम्हारे।
कुंदुतुषार हार मन मोहे,
पुरवहु आश हमारे।।
